एक ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम शख्स, जिनका पूरा जीवन परेशानियों से भरा रहा, लेकिन फिर भी उन्होंने हर जाति, हर वर्ग के दोस्तों के साथ, दिल से रिश्ता निभाया। अपना संयम और धैर्य कभी नहीं खोया। यही हमारे, भगवान श्री राम थे, जिनका पूरा जीवन हमें सिखाता है, कि अपने स्वभाव में रहते हुए, कैसे परिस्थितियों से लड़ना है। लेकिन कई बार, कुछ लोग उनके जीवन पर सवाल उठाते हैं। और आज फिर राम के जीवन पर लिखी गई रामचरितमानस की आलोचना हो रही है। क्या हमारे लिए, भगवान श्री राम का चरित्र ज्यादा जरूरी है या फिर ये विवाद? भगवान श्री राम की जीवन कथा, रामायण है। यह ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। उसकी एक कॉपी- रामचरितमानस महाकाव्य है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने 16वीं सदी में लिखा था। त्रेतायुग में धर्म की स्थापना के लिए, भगवान श्री राम ने राजा दशरथ के घर जन्म लिया था। हम सब जानते हैं कि छोटी-बड़ी समस्याएं हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं, इससे भगवान राम भी अछूते नहीं थे। उनकी पूरी जिंदगी कष्ट में बीती। सबसे पहले अपना राजपाट छोड़ना पड़ा, राजघराने की विरासत, एक ऐशोआराम की जिंदगी छोड़नी पड़ी। उसके बाद 14 साल वनवास झेलना पड़ा। ऊपर से पत्नी का विरह देखना पड़ा, जब रावण ने छल से सीता माता का अपहरण कर लिया। वो किसी भी हालत में किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते थे, लेकिन
पत्नी को छुड़ाने के लिए, श्री राम ने युद्ध करके लंका के राजा रावण का वध भी किया. और यह संघर्ष यहीं नहीं रुका, जब सीता माता को लेकर वापस लौटे, तो लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा। और अंत में, अपने प्रजा धर्म को निभाते हुए, अपनी पत्नी को ही खोना पड़ा। जीवन की शुरुआत से लेकर, अंत तक, भगवान राम ने कई दुखद क्षण देखे, लेकिन तब भी, उन्होंने खुद को गरिमा में रखा। इसलिए वो मर्यादा पुरुषोत्तम राम कहलाए। रामायण, हमारे जीवन का सार है और यह प्राचीन इतिहास, भारत के वर्तमान और भविष्य का मार्गदर्शक। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसकी नजरों में हर धर्म, हर जाति और हर समुदाय के लोग, बराबर हैं। लेकिन कुछ लोग, अक्सर धार्मिक पुस्तकों और धर्मों से जुड़े मुद्दों पर सवाल उठाते हैं। उनकी आलोचना करते हैं। इतना ही नहीं, कभी कभी तो भगवान को भी किसी खास धर्म का बताया जाता है। और अब एक बार फिर, भगवान राम के ऊपर लिखी गई - रामचरितमानस पर सवाल उठाए जा रहे हैं! यहां सवाल यह उठता है कि क्या हमारे लिए, हमारे भगवान राम ज्यादा जरूरी हैं, या फिर ये ग्रंथ। हर चीज में कमियां निकालना मानव स्वभाव है। वनवास के दौरान भगवान राम ने, हर किसी पर दया की। चाहे केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण, हनुमान या शबरी , उनके दिल में हर किसी के लिए दया और स्नेह था। और तो और रावण के साथ, युद्ध के दौरान- मनुष्य और पशुओं से लेकर, दानव तक, हर कोई उनकी सेना में शामिल था। उन्होंने बिना किसी भेदभाव के, हर किसी के साथ दिल से करीबी रिश्ता निभाया। लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न, भगवान राम की सौतेली मां के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने सभी भाइयों के साथ सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण, और प्यार किया।
वास्तव में भगवान राम का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन में आने वाली परेशानियों को टाला नहीं जा सकता, लेकिन जरूरी यह है कि किस तरह से उन्हें शांति और समझदारी से सुलझाया जा सकता है। आप ही बताएं, आप भगवान राम की पूजा क्यों करते हैं। किसी भौतिक सुख की चाहत में, कि आपको घर, गाड़ी, शोहरत और पैसा मिल जाए। जॉब में प्रमोशन, बिजनेस में ग्रोथ या फिर कहीं से कोई बड़ा मुनाफा हो जाए, क्या इसलिए भगवान राम की पूजा करते हैं। बिलकुल नहीं, दरअसल, भगवान राम की पूजा इसलिए नहीं की जाती कि हमारी भौतिक इच्छाएं पूरी हो जाएं। बल्कि राम की पूजा इसलिए करते हैं, कि उनके जैसा बन पाएं। उनके गुणों को अपना पाएं। उनकी बताई बातों को, अपनी जिंदगी में उतार पाएं। जिस तरह उन्होंने धैर्य पूर्वक मुश्किल क्षणों का सामना, किया, उसी तरह हम भी अपनी जिंदगी की हर जंग जीत पाएं, इसलिए भगवान राम को पूजा जाता है। भगवान राम का पूरा जीवन अध्यात्म का सार है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज, रामचरितमानस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भारत के वर्तमान हालात की बात करें, तो किसान आत्महत्या कर रहे हैं, युवा बेरोजगार हैं, देश में गरीबी और भुखमरी है। लेकिन पॉलिटिशियन देश की इन असल समस्याओं की जगह, यह बताने में व्यस्त हैं कि रामचरित मानस में क्या गलत लिखा गया है। आज लगभग हर पॉलिटिशियन, भगवान या धर्म का नाम लेकर लोगों को बांटना चाहता है। किसी खास धर्म के लोगों को फेवर कर, अपना वोट बैंक तैयार कर रहा है। दूसरे धर्म के लोगों को नीचा दिखाने के लिए, हेट स्पीज दी जा रही हैं। इससे देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क सकते हैं, यह जानते हुए भी नेता, किसी खास धर्म को टारगेट कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि इस साल 10 राज्यों में इलेक्शन के साथ-साथ, साल 2024 में लोकसभा इलेक्शन भी हैं। और इसलिए पॉलिटिशियन वोटबैंक के लिए, देश के वास्तविक मुद्दों को नजरअंदाज कर, धर्म की राजनीति खेल रहे हैं। लेकिन क्या धर्म और धार्मिक पुस्तकों के नाम पर यह राजनीतिक एजेंडे, क्या देश की जनता और ग्रोथ के लिए सही हैं। भगवान राम, सहनशीलता और धैर्य, का पर्याय हैं। कैकेयी के कहने पर, वन में 14 साल बिताना, समुद्र पर सेतु बनाने के लिए तपस्या करना, सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी संन्यासी की तरह जीवन जीना, उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है। क्या हमें उनके इन गुणों को अपनाना चाहिए या फिर फिजूल मुद्दों पर देश को बांटना चाहिए? डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी ब्रिटिश काल से चली आ रही है और आज भी कई पॉलिटिशियन, अपने वोट बैंक के लिए धर्म के आधार पर लोगों को बांटना चाहते हैं। इसलिए, अब नागरिक ही हैं, जिन्हें समझदारी से काम लेना होगा। नेताओं के इस निजी स्वार्थ को समझने की कोशिश करें, हम में से किसी का भी धर्म, दूसरों से नफरत करना नहीं सिखाता है। यह सिर्फ वोट बैंक के लिए, पॉलिटिशियन की एक सेलफिश गेम है।